‘पिंक’ देखने से पहले ही मर्द मुख्तारी पर लाल हुईं पाक की युवतियां
रंजू ऐरी डडवाल/ट्रिन्यू
चंडीगढ, 1 अक्तूबर
चंडीगढ़ में शनिवार को एक कार्यक्रम में वार्तालाप करती भारत-पाकिस्तान की लड़कियां। -मनोज महाजन
पाकिस्तान से आई 19 युवतियों ने आज पिंक देखी। पिंक, वह फिल्म जो लड़कियों की आजादी, खुलेपन और खुद-मुख्तारी की बात करती है। अब यह पिंक का असर हो या भारतीय परिवेश का कि पड़ोसी देश से आई युवतियों की जुबां से बेसाख्ता निकल पड़ा कि मर्दों की हुकूमत वाले घरों और समाज में कोई बेटी खुद मुख्तारी की बात सोच भी नहीं सकती। यहां तक कि डाॅक्टरी की पढ़ाई कर रही नील फातिमा भी यही कहती है कि, ‘मैं पढ़ाई तो एमबीबीएस की कर रही हूं। लेकिन मैं मेडिकल की पढ़ाई करूं, यह फैसला भी मेरे घर वालों का था। डॉक्टर बनने के बाद मैं क्या करूंगी, यह भी मेरे हाथ में नहीं है। यह भी वे ही तय करेंगे।’
नील फातमा के साथ पाकिस्तान से आई 19 लड़कियां बोल पड़ीं कि वे तो ऐसे मुल्क से आई हैं जहां बेटियां खुद मुख्तारी की बात सपनों में भी नहीं सोच सकतीं। ‘पिंक’ देखने से पहले ही पाकिस्तानी समाज पर काबिज मर्दों की मुख्तारी वाले सिस्टम पर ये युवतियां ‘रेड’ नजर आयीं। पाकिस्तान के अलग-अलग शहरों और जुदा-जुदा परिवेश से आई लड़कियों के होठों पर एक से अल्फाज थे कि बेटियों को जो चाहें करने की आजादी नहीं है। वे वही कर सकती हैं जो मर्दों की मर्जी हो।
पाकिस्तान की यह लड़कियां दुनिया भर से चंडीगढ़ में जुटे उस युवा समूह का हिस्सा हैं, जो वैश्विक युवा समागम के बहाने सामाजिक और सांस्कृतिक विचार व विरासत साझा कर रहा है। लिहाजा यूथ फेस्ट के आयोजकों ने फिल्म दिखाने से पहले पाकिस्तानी युवाओं की हिंदुस्तानी बेटियों के साथ चर्चा भी कराई।
चर्चा इस लिए ताकि पड़ोसी देश की लड़कियां उस देश के सामाजिक माहौल को समझ सकें जिसको आधार बनाकर पिंक फिल्म बनी है।
पिंक फिल्म देखने के दौरान एलांते माल में इन लड़कियों का साथ दिया हिंदुस्तानी बेटियों ने। वैसे भी हिंदी फिल्मों ने दोनों देशों के बीच नाता जोड़ रखा है और आम पाकिस्तानी बालीवुड और उनके हीरो सलमान, शाहरुख और आमिर खान के दीवाने हैं।
लाहौर में पंजाब विश्वविद्यालय की छात्रा उर्वाह सुल्ताना के लफ्जों में आम पाकिस्तानी शांति चाहता हैं ताकि वे पाकिस्तानी में बैठकर बॉलीवुड फिल्मों का मज़ा ले सकें।
हम शांतिदूत पर चलती तो मर्दों की ही है : तैयब्बा
महिला सशक्तिकरण पर आधारित फिल्म पिंक देखने जाने से पहले भारतीय छात्राओं के साथ हुई चर्चा दोनों देशों के समाज में महिलाओं की स्थिति पर फोकस हो गयी। भारत-पाक में शान्ति बहाली के प्रयास में लगी संस्था आवाज़े दोस्ती की प्रतिनिधि तैयब्बा का मानना है कि शान्ति बहाली में महिलाओं का योगदान कभी आंका ही नहीं गया। वह यह भी बोल पड़ी कि उनके घरों में छोटे-छोटे बच्चों को सिखाया जाता है कि भारत के लोग हमसे नफरत करते हैं। उनका कहना था कि उनकी संस्था पाकिस्तान में इसी सोच को बदलने का प्रयास कर रही है।
बदली सोच के साथ लौटेंगी पाकिस्तान
इन लोगों का कहना था कि यहां आकर उन्हें जो सम्मान मिला उसके बाद वह एक बदली सोच के साथ अपने वतन लौटेंगे। इसी दल में शामिल पाकिस्तान की मानव अधिकार सुरक्षा संगठन की सदस्य नाजिया सैय्यद का कहना था कि दोनों देशों की सांस्कृति, सामाजिक परिवेश में कोई अंतर नहीं है व दोनों देशों की महिलाओं की स्थिति भी भिन्न नहीं है। दूसरी ओर भारतीय छात्राओं ने कहा कि वह जो कर रही हैं अपनी मर्जी से। उनके ऊपर कुछ भी थोपा नहीं जाता।